अस्पृशता हा हिंदू धर्मावरील कलंक नसून, तो आमच्या नरदेहावरील कलंक आहे. यासाठी, तो धुवून काढायचे पवित्र कार्य आमचे आम्हीच स्वीकारले आहे.- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर | कभी हमारा अपना कोई धर्म था| उस धर्म कि धारा सुखी नाहि है| संतो ने उसे प्रवाहित रखा है. गुरु रविदास लिख गये है| धर्म के सार को| वे नया धर्म दे गये है| उस पर चलो| - बाबू जगजीवन राम

Saturday, February 15, 2014

प्रश्न आरक्षण का?



प्रश्न आरक्षण का?
प्रश्न आरक्षण का?
गुरू रविदासीजी डंके की चोट पर कहते है मेरी जाति बिखियात चमार
1931 में पहली बार उस समय के जनगणना आयुक्त जे. एन. हटन ने संपूर्ण भारत के अस्पृश्य जाति की जनगणना की और भारत में 118 अस्पृश्य जातियां है व यह सभी जाति हिन्दू धर्म के बाहर की हैं, इसलिए इन जातियों को बहिष्कृत जाति कहा गया है. उस समय के प्रधानमंत्री रैम्से मैक्डोनाल्ड ने हिन्दू मुसलमान, शिख,एंग्लो इंडियन उसी तरह बहिष्कृत जाती स्वतंत्र वर्ग है. और यह सभी जातीयां हिन्दू धर्म में समाविष्ट नहीं होने का सुनिष्टिद्धr(155)त कर उनकी एक सूची तैयार की. उसी सूची में समाविष्ट जातियों को ही अनुसूचित जाति कहा जाता है. इसी के आधार पर भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति कानून 1935 के अनुसार कुछ सहूलियतें दी गई. उसी आधार पर भारत सरकार ने अनुसूचित जाति अध्यादेश 1936 जारी कर आरक्षण सहूलियतें दि गई. आगे उसी अनुसूचित जाति की सूची की जाति मानकर 1936 के अध्यादेश में थोडी हेरफेर कर अनुसूचित जाति अध्यादेश 195० जारी कर आज जो हमें आरक्षण सहूलियतें दी गई है. परमपूज्य डा. बाबासाहेब आम्बेडकर को 1931 की गोलमेज परिषद व उसके बाद 1932 पुणे महात्मा गांधी के अनशनकाल में अस्पृश्यों को आरक्षण सहूलियतें मिलने के लिए बहुत कष्ट झेलने पडे और मिली हुई आरक्षण सहूलियतें कायम रखने के लिए संविधान समिती ने मे बडी कसरत करनी पडी. इससे हमें आज आरक्षण का लाभ मिल रहा है.
यह आरक्षण बडी मुसीबतो , अत्यंत दूखों और बेशुमार
विरोधियों का मुकाबला करके मैने तुम्हारे लिए प्राप्त किया है
.
अनुसूचित जाति के नागरीक हिन्दू धर्म के है. इसलिए उनको आरक्षण मिलता है, हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्मातर करने वालों का आरक्षण बंद हो जाएगा, ऐसा डर व्यक्त करने वालों को नागपूर 14 अक्कूबर 1956 बौद्ध धर्मातर की जन सभा को संबोधीत करते हुये प.पू. डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर जी ने मुहतोड जवाब देते हुये कहा था.. ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39)यह आरक्षण बडी मुसीबतो , अत्यंत दूखों और बेशुमार विरोधियों का मुकाबला करके मैने तुम्हारे लिए प्राप्त किया है. दलितो का आरक्षण मेरे कोट की जेब मे है.ष्टद्धr(39)ष्टद्धr(39) डा. बाबासाहब के कोट की जेब अर्थात हिन्दू, बौद्ध और सिख धर्म मे अनुसूचित जातियां होती है. ऐसा भारतीय संविधान में प्रावधान है. इसलिए भारतीय जनगणना के परिवार पत्रक में इसका उल्लेख स्पष्ट तौर पर किया जाता है. ता की अनुसूचित जाति के नागरीकों को जनगणना के परिवार पत्रक 6 नंबर कालम मे बौद्ध धर्म और 7 नंबर कालम मे अपनी अनुसूचित जाति, चांभार, महार, ढोर, मांग, माला, मादिगा, मोची, चमार, परमार, समगर, रेगर आदी आप जिस जाति के है वह जाति का नाम रजिस्टर करने में सुविधा प्राप्त हो.
अर्थात हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्मातर करने के बाद भी अनुसूचित जाति के नागरिक अपनी जाति लिख सकते है. और जाति प्रमाणपत्र भी प्राप्त कर सकते है. और जाति प्रमाणपत्र हमारे पास है तो जाति के नाम पर मिलने वाला आरक्षण मिलता ही रहेगा. मतलब धर्मातर करने से आरक्षण बंद नही होगा. उल्टे आज अगर 21 करोड से भी ज्यादा अनुसूचित जाति के नागरीको की बौद्ध धर्म के नाम से स्वतंत्र गणना होती, तो हमारी राजनितिक ताकत संपूर्ण भारत मे बडजाती थी और उतनी ही हिन्दू धर्म की संख्या घट जाती थी, क्योंकि हम हिन्दू धर्म लिखते है. हिन्दू धर्म की संख्या बड जाने से उनकी राजनीतीक ताकत भी बड जाती है. और हमारे ही ताकत के बल पर हमारे ही लोगों के उपर सवर्ण हिन्दूओं द्वारा अत्याचार किया जाते है. वह बंद हो जाते. यही है बाबासाहेब के कोट की जेब का सरल अर्थ जो मेरे समज मे आता है.
गुरू रविदासीजी डंके की चोट पर कहते है ष्टद्धr(39)मेरी जाति बिखियात चमार /अर्थात ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) धर्म संस्थापक हमारे चमार जाति के है. ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) धर्मातर करने वाले हम लोग भी चमार जाती के ही है. अर्थात रविदासीया धर्म अनुसूचीत जाति के चमारो का ही है. मतलब हिन्दू धर्म का त्याग कर ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) धर्मातर करने से किसी भी अनुसूचित जाति का आरक्षण बंद नही हो सकता. यही बात को ध्यान मे रखते हुए, गुरु रविदास धर्म सभा के नेतृत्व मे फरवरी 211 को मुंबई मे अनुसूचित जाति के चमार समाज को ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) इस नाम से स्वतंत्र धर्म भारतीय जनगणना मे रजिस्टर करने हेतू, इस मांग को लेकर हमारे नेताओं का प्रतिनीधी मंडल केंद्र सरकार के जनगणना संचालक श्री. रंजीत देओलजी से मिला हमारे नेताओं से विस्तृत चर्चा होने के बाद ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) धर्म यह हिन्दू धर्म का ही पंथ मानकर श्री रंजीत देओलजी से हमारी इस मांग को समर्थन करते हुये जनगणना के परिवार पत्रक मे धर्म ष्टद्धr(39)रविदासीयाष्टद्धr(39) और अपनी अनुसूचीत जाति लिखने की आनुमती दे दी. उसके बाद गुरू रविदास धर्म सभा के सभि कार्यकर्ता ओ ने मिलकर िपट्र मेडीया, इलेक्ट्रॉनिक मेडीया, के माध्यम से खुब प्रचार प्रसार किया और महाराष्ट्र के हजारो महारे भाईयों ने भारतीय जनगणना 211 मे अपना धर्म हिन्दू ना लिखते हुऐ रविदासिया(39) लिखकर नया इतिहार रचा.

No comments:

Post a Comment